आर्टिकल 15 क्या है ???
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क्यों है विवाद हिंदी फिल्म "आर्टिकल 15" पर ??
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आप जानते हैं कि हमारे देश में हर वर्ष सैकड़ों, हज़ारों फ़िल्में बनती हैं और इनमें से कुछ फिल्में समय-समय पर चर्चा एवं विवाद का विषय भी बन जाती हैं। इसी कड़ी में हाल ही में रिलीज़ हुई अनुभव सिन्हा और गिन्ग्गर शंकर निर्देशित हिंदी फीचर फिल्म "आर्टिकल 15 ( ARTICLE 15 )" लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है।
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बताया जा रहा है कि यह फिल्म सच्ची घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसके कंटेंट को लेकर कई लोगों को आपत्ति भी है। सवर्णों के एक संगठन ने इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। फिल्म में उत्तर प्रदेश के एक गाँव की कहानी दर्शाई गई है और इसका टाइटल संविधान से लिया गया है, जिसका नाम है आर्टिकल 15 ■
आइये जानते हैं , क्या है आर्टिकल 15 ?
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भारतीय संविधान अनुच्छेद 15 (Article 15 in Hindi) -
धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
संविधान के आर्टिकल संख्या 14 से लेकर आर्टिकल 18 तक में देश के सभी नागरिकों को समानता का मौलिक अधिकार देने की बात कही गई है।भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के छः मौलिक अधिकार दिये गए हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य है कि हर नागरिक सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सके और किसी के साथ ,किसी भी आधार पर भेदभाव न हो।
आर्टिकल -15 के मुख्य चार बिंदु हैं , जो नीचे दिए गए हैं :- जानें 👉👉👉
1⃣ राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
2⃣ कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर----
(क) ➡ दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
(ख) ➡ पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग,
के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
3⃣ इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
4⃣ इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
मौलिक अधिकारों भी जानें , क्या हैं मौलिक अधिकार ????👉👉
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➡ मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये अनिवार्य होने की वज़ह से संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये गए हैं और जिनमें राज्य द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
➡ये ऐसे अधिकार हैं जो किसी के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता।
➡इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हें देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त इनमें किसी भी प्रकार से संशोधन नही किया जा सकता।
➡ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं तथा इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाएगा।
➡इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता। मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते हैं।
👉 44वाँ संशोधन होने से पहले संविधान में दिये गए मौलिक अधिकारों की सात श्रेणियाँ थीं, परंतु इस संशोधन के द्वारा संपत्ति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया।
ये हैं मौलिक अधिकार ➡
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1⃣ समानता का अधिकार: इसमें कानून के समक्ष समानता, धर्म, वंश, जाति लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध तथा रोज़गार के संबंध में समान अवसर शामिल है।
2⃣ स्वतंत्रता का अधिकार: भाषा और विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता का अधिकार, एकत्र होने संघ या यूनियन बनाने, आने-जाने, निवास करने और कोई भी जीविकोपार्जन एवं व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का अधिकार (इनमें से कुछ अधिकार राज्य की सुरक्षा, विदेशों के साथ भिन्नतापूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता के तहत दिये जाते हैं)।
3⃣ शोषण के विरुद्ध अधिकार: इसमें बेगार, बाल श्रम और मनुष्यों के व्यापार का निषेध किया गया है।
4⃣ धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: आस्था एवं अंत:करण की स्वतंत्रता, किसी भी धर्म का अनुयायी बनना, उस पर विश्वास करना एवं धर्म का प्रचार करना इसमें शामिल हैं।
5⃣ सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकार: किसी भी वर्ग के नागरिकों को अपनी संस्कृति सुरक्षित रखने, भाषा या लिपि बचाए रखने और अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद की शैक्षिक संस्थाएँ चलाने का अधिकार।
6⃣ संवैधानिक उपचारों का अधिकार: मौलिक अधिकार के प्रवर्तन के लिये संवैधानिक उपचार का अधिकार।
आशा करते हैं ये जानकारी आपको अच्छी लगी होंगी ।
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ABHIDFAITH
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धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
(क) ➡ दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
(ख) ➡ पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग,
के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
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➡ये ऐसे अधिकार हैं जो किसी के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता।
➡इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हें देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त इनमें किसी भी प्रकार से संशोधन नही किया जा सकता।
➡ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं तथा इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाएगा।
➡इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता। मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते हैं।
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